हालांकि असम में कई हिस्सों में अब भी साल 2019 के आंदोलन निशान हैं. चाहे दीवारों पर एंटी सीएए नारे लिखें हो निशाना बनाए गए पोस्ट ऑफिस. यह सब संसद द्वारा सीएए पारित किए जाने के बाद शुरु हुए आंदोलन की निशानियां हैं.
सुरक्षा बल और स्थानीय कार्यकर्ता आमने सामने आ गए
चाबुआ में सुरक्षा बल और स्थानीय कार्यकर्ता आमने सामने आ गए. स्थानीय लोगों का मानना है कि सीएए बांग्लादेश से हिंदू प्रवासियों की आमद की अनुमति देकर असम के सामाजिक सांस्कृतिक ताने बाने में बदलाव लाएगा. संशोधित नागरिकता कानून के तहत 31 दिसम्बर 2014 तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.पहले चरण में हुए मतदान के दौरान इस इलाके में भी चुनाव हुआ. चाबुआ शहर हिंसक आंदोलन के बाद से अब लंबा रास्ता तय कर चुका है. इलाके में अब मूल्य वृद्धि, बाढ़ और विकास जैसे नए मुद्दों जगह ले ली है. लोगों को उम्मीद है कि इलाके में दोनों दलों के उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर होगी.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने असोम गण परिषद (एजीपी) को चाबुआ सीट दी है. सत्तारूढ़ भाजपा विधायक बिनोद हजारिका, जिनके घर पर हिंसा के दौरान हमला हुआ था, पड़ोसी लाहौल सीट से उम्मीदवार हैं. असम छात्र संघ (AASU) के स्थानीय कार्यकर्ता ने कहा, भाजपा गठबंधन के लिए इस सीट को बरकरार रखना मुश्किल हो रहा है. बहुत सारे मतदाता हाथी (एजीपी का चुनाव चिन्ह) के लिए वोट देने के लिए तैयार नहीं हो रहे.’ AASU सत्तारूढ़ पक्ष का विरोध कर रहा है और उसने क्षेत्र में सीएए विरोध का नेतृत्व किया था.
कांग्रेस ने सीएए विरोध को आधार बना कर प्रचार किया
कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन ने सीएए विरोध को आधार बना कर अपना पूरा प्रचार किया है. वहीं यह मुद्दा ना तो बीजेपी के मैनिफेस्टो में है और ना ही ब्रह्मपुत्र घाटी में हुए प्रचार के दौरान इसका किसी पार्टी नेता ने कोई जिक्र किया है. ब्रह्मपुत्र घाटी, ऊपरी असम में तिनसुकिया से लेकर निचले असम में बांग्लादेश की सीमा पर धुबरी तक फैली हुई है, जिसमें राज्य के 126 विधानसभा क्षेत्रों में से 106 सीटे हैं. इसके अलावा दक्षिणी असम में बंगाली भाषी बराक घाटी में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं, और कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ के पहाड़ी जिलों में पांच सीटे हैं. 27 मार्च को पहले चरण में ब्रह्मपुत्र घाटी के 47 सीटों पर मतदान हुआ.
साल 2016 में, जब बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन ने बराक घाटी में आठ सीटें जीतीं और पहाड़ी की सभी पांच सीट पर जीत हासिल की. पहले चरण के मतदान में जिन 47 सीटों पर चुनाव हुए, उनमें से भाजपा गठबंधन को 35 में जीत मिली थी. सत्ता बरकरार रखने के लिए पार्टी को 2021 में इस प्रदर्शन को दोहराना होगा.
‘बदरूद्दीन असमिया पहचान के दुश्मन’
राज्य में दूसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के बदरुद्दीन कमाल के साथ गठबंधन करने के लिए कांग्रेस पर हमला करते हुए, अपने विकास कार्यों और योजनाओं पर ध्यान केंद्रित रखने की रणनीति बनाई है. सत्ताधारी गठबंधन का कहना है बदरूद्दीन असमिया पहचान के दुश्मन हैं.
असम में AIUDF को बंगाली भाषी मुसलमानों के समर्थन वाली पार्टी माना जाता है, जिनके पूर्वज पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए थे. कई लोग कहते हैं कि ये लोग राज्य की सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा हैं.
कांग्रेस इन आरोपों को खारिज करती है. छत्तीसगढ़ के सीएम और राज्य में कांग्रेस के पर्यवेक्षक भूपेश बघेल ने कहा, ‘जब पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव हुए और उन्होंने (भाजपा) ने नागांव और दारंग में स्थानीय चुनावों में एआईयूडीएफ का समर्थन लिया तब कोई समस्या नहीं थी. अब एआईयूडीएफ भाजपा का विरोध कर रही है, इसलिए वे राज्य के लिए खतरा बन गए हैं. जो लोग भाजपा के साथ हैं, वे गंगा जल के समान पवित्र हैं, और जो पंजाब और हरियाणा में किसानों की तरह नहीं हैं, वे खालिस्तानी और आतंकवादी बन जाते हैं.’
सादिक नकवी की यह खबर मूलतः अंग्रेजी में है. पूरा पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-
In BJP Strategy Book, A Chapter on How to Counter CAA Fallout and Script Assam Win