जानिए, क्या है हलाल और हराम
हलाल एक अरेबिक शब्द है जिसका मतलब है जायज़ या वैध. ये इस्लाम से जुड़ा हुआ है, जो खाने के मामले में और उसमें भी खासकर मीट के मामले में तय करता है कि वो किस तरह से प्रोसेस किया हुआ हो. वहीं हराम भी एक अरेबिक शब्द है जिसका मतलब है वर्जित यानी मनाही वाला. हराम के तहत इस्लाम में कई चीजें और आचार-विचार आते हैं, जैसे शराब, मरे हुए जानवर को काटना, पोर्क और वो सारा मीट जो हलाल प्रक्रिया से न गुजरा हो.
हाल ही में विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) ने हलाल प्रोडक्ट के खिलाफ मुहिम छेड़ दी (Photo-flickr)
क्या कहते हैं हलाल के नियम
ये जानवर से मीट बनाने (slaughter) की खास प्रक्रिया है जो केवल मुस्लिम पुरुष ही कर सकते हैं. जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक आगे की प्रोसेस दूसरे धर्मों के लोग भी कर सकते हैं, जैसे क्रिश्चियन या यहूदी. जानवर को काटने की प्रोसेस एक धारदार चाकू से होनी चाहिए. इस दौरान उसके गले की नस, ग्रीवा धमनी और श्वासनली पर कट लगना चाहिए. जानवर को हलाल करते हुए एक आयत बोली जाती है, जिसे Tasmiya या Shahada भी कहते हैं. हलाल की एक अहम शर्त ये है कि हलाल के दौरान जानवर पूरी तरह से स्वस्थ हो. पहले से मुर्दा जानवर का मीट खाना हलाल में वर्जित है.
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क्या है हलाल सर्टिफिकेशन
कई इस्लामिक देशों में हलाल सर्टिफिकेट सरकार से मिलता है. भारत में वैसे तो फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) लगभग सारे प्रोसेस्ड फूड पर सर्टिफिकेट देती है लेकिन हलाल के लिए ये काम नहीं करती. बल्कि यहां पर हलाल सर्टिफिकेशन के लिए अलग-अलग कंपनियां हैं, जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट.

कई इस्लामिक देशों में हलाल सर्टिफिकेट सरकार से मिलता है (Photo-pixabay)
दवा और कॉस्मेटिक उद्योग में क्यों जरूरी
दवा और कॉस्मेटिक कंपनियां अपने उत्पाद के लिए हलाल सर्टिफिकेट इसलिए लेती हैं क्योंकि वे उसके लिए जानवरों के बाय-प्रोडक्ट का इस्तेमाल करती हैं. जैसे परफ्यूम में अल्कोहल होता है, इसी तरह से लिपस्टिक में कई जानवरों की चर्बी होती है, ऐसा माना जाता है. ये चीजें इस्लाम में हराम होती हैं इसलिए इनकी निर्माता कंपनियों को ये बताना होता है कि उन्होंने ऐसे किसी प्रोडक्ट का उपयोग नहीं किया है.
बहुत बड़ा है हलाल का कारोबार
कंपनियां अपने उत्पादों को इस्लाम-बहुल देशों में मान्यता दिलाने के लिए हलाल सर्टिफिकेशन लेती हैं. साल 2016 में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हलाल फूड का कारोबार 415 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का है. यही वजह है कि इतने बड़े मार्केट को सर्व करने के लिए कंपनियां खुद को इससे अलग नहीं रख पाती हैं.
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यहां तक कि आजकल एक नया टर्म चलन में आ चुका है- हलाल टूरिज्म. इसके तहत बड़े-बड़े होटलऔर रेस्त्रां ये दावा करते हैं कि उनके यहां शराब या फिर पोर्क जैसी चीजें नहीं परोसी जाती हैं. ये दावा इसलिए है ताकि बड़ी संख्या में इस्लाम को मानने वाले उनके यहां निश्चिंत होकर रह सकें.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हलाल फूड का कारोबार 415 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का है (Photo-pixabay)
क्यों मचता रहा है बवाल
वैसे हलाल सर्टिफिकेशन पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. इसकी एक वजह तो ये है कि हर देश में इसके रेगुलेशन का कोई तय नियम न होने के कारण इससे आया पैसा कहां खर्च होता है, इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती. दूसरी एक बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि चूंकि मीट को हलाल बनाने में हिंदू या दूसरे धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता है, लिहाजा इससे दूसरे धर्मों के लिए रोजगार कम होता है. कई देशों में इस बात को लेकर विरोध हो रहा है.
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श्रीलंका ने यही कारण देते हुए खाने के प्रोडक्ट्स से हलाल सर्टिफिकेशन हटा दिया. अब केवल उन्हीं प्रोडक्ट को हलाल सर्टिफिकेशन दिया जाएगा, जो सीधे दूसरे देशों को भेजे जाते हों. श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय की अगुआ All Ceylon Jamiyyathul Ulama (ACJU) ने interest of peace का हवाला देते हुए ये फैसला लिया. साल 2019 में वहां हुए आतंकी हमले के बाद समुदायों में शांति बनाए रखने के लिहाज से ये फैसला लिया गया था.

इसी तरह से कोशर मीट यहूदी मान्यता के तहत आता है (Photo-pixabay)
यहूदियों में भी हलाल से मिलता-जुलता नियम
केवल हलाल ही नहीं, कोशर फूड को भी खाने और खाने वालों के साथ भेदभाव की तरह देखा जाता है और कई देशों में इनपर बैन लगा हुआ है. बता दें कि कोशर मीट यहूदी मान्यता के तहत आता है. कोशर असल में हिब्रू शब्द काशेर से आया है. इसका मतलब है शुद्ध या खाने योग्य. यहूदी गाइडलाइन के मुताबिक कोशर फूड में कई चीजें या उनकी पेयरिंग बैन हैं. जैसे मीट के साथ किसी भी तरह का डेयरी प्रोडक्ट इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. साथ ही खाना पकाने के दौरान कई बातों का सख्ती से पालन होना चाहिए.
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खाने में धार्मिक भेद को खत्म करने के लिए कई देशों जैसे स्वीडन, नॉर्वे, आइसलैंड, डेनमार्क और स्लोनवाकिया ने एक कदम उठाया. इसके तहत जानवरों को काटने के लिए कोई धार्मिक छूट नहीं दी जाती है. यानी इसके आधार पर हलाल या कोशर जैसा कोई सर्टिफिकेट नहीं मिलता है.