चीन लगातार कर रहा तैनाती
लद्दाख में चीन ने होटल एयरबेस के पास चेंगदू J-20 स्टील्थ लड़ाकू विमान तैनात किए हैं. ये वही एयरबेस है, जहां से सिर्फ 200 मील की दूरी पर वो जगह है, जहां बीते दिनों भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. अब इसी जगह के पास स्टील्थ विमानों की तैनाती से चीन की दोबारा आक्रामक हो सकने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि चीन का कहना है कि ये रेगुलर सीमा सुरक्षा नियमों के तहत किया जाता रहा है.
विशेषज्ञों के मुताबिक रडार से छिपे रहने वाला विमान कोई भी नहीं हो सकता (सांकेतिक फोटो)
क्या कह रहे चीनी विशेषज्ञ
चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स से बात करते हुए चीनी मिलिट्री एविएशन मामलों के जानकार फू किनशाओ ने बताया कि J-20 काफी दूरी तक काम करने वाला फायटर जेट है और उसे होटन एयरबेस पर तैनात करने पर सेंट्रल और साउथ एशिया की कई जगहों को कवर किया जा सकता है. हालांकि ये केवल सामान्य ट्रेनिंग का हिस्सा है और इसे अलग तरह से देखा नहीं जाना चाहिए.
ये भी पढ़ें: North Korea: किम जोंग क्यों अपनी छोटी बहन को बना रहे हैं पावरफुल
इसी बीच चीन अपने इस विमान के साथ-साथ उसके स्टील्थ होने के लगातार बखान कर रहा है. स्टील्थ का मतलब है छिपा हुआ या गुप्त. यानी स्टील्थ फायटर जेट हों या फिर स्टील्थ सबमरीन- ये दुश्मन पर टोह लगाने या वार करने के दौरान दिखाई नहीं देंगे. उन्हें रडार से या किसी भी वर्तमान तकनीक से ट्रेस नहीं किया जा सकता है.
ये भी पढ़ें: कौन है रूस का वो नेता, जिससे ताकतवर पुतिन को भी डर लगता है?
चीन का चेंगदू J-20 पांचवी जेनरेशन का लड़ाकू विमान है, जिसे चीन की चेंगदू एयरोस्पेस कार्पोरेशन ने चीनी एयरफोर्स के लिए बनाया. साल 2011 में बनने के पांच सालों बाद इसे चीन ने आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया था. चीन के मुताबिक ये एशिया का सबसे पहला स्टेल्थ फाइटर जेट है. यानी वो जेट जिसे रडार, इन्फ्रारेड, सोनार और अन्य पकड़ने वाले तरीकों से पकड़ना लगभग नामुमकिन है.

एयरक्राफ्ट की गर्मी, आवाज या विकिरणों से भी उसका पता लग सकता है (सांकेतिक फोटो)
क्या होता है स्टील्थ
हालांकि इस दावे में दम नहीं माना जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक रडार या फिर इन्फ्रारेड से छिपे रहने वाला विमान कोई भी नहीं हो सकता और बहुत छिपकर भी ये पकड़ाई में आ ही जाता है. वैसे ये बात सही है कि विमान या सबमरीन में ये खूबी उसे ट्रेस करने को थोड़ा मुश्किल तो बना ही देती है. इसका डिजाइन काफी कॉम्पलेक्स होता है ताकि सेंसर से बचा रह सके. चूंकि एयरक्राफ्ट की गर्मी, आवाज या विकिरणों से भी उसका पता लग सकता है, ये ध्यान में रखते हुए स्टील्थ एयरक्राफ्ट या सबमरीन में इन्हें भी कम से कम रखा जाता है.
ये भी पढ़ें: क्यों चीन में भुखमरी के लिए एक पॉपुलर शो को दिया जा रहा दोष
कितने स्टील्थ एयरक्राफ्ट हैं दुनिया में
चीन के चेंगदू के अलावा युद्ध के लिए पूरी तरह से जांचे जा चुके स्टील्थ विमानों में अमेरिका का Northrop Grumman B-2 Spirit और अमेरिका का ही Lockheed Martin F-22 Raptor शामिल हैं. सुखोई भी इसी श्रेणी में आता है. इनके अलावा बाकी सारे देश अपने लिए स्टील्थ विमान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. राफेल एयरक्राफ्ट को भी स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस बताया जाता रहा है.

इसका डिजाइन काफी कॉम्पलेक्स होता है ताकि सेंसर से बचा रह सके (सांकेतिक फोटो)
कई दिक्कतें भी हैं इसके साथ
दुश्मन सेना को चकमा देने में माहिर स्टील्थ एयरक्राफ्ट या फिर सबमरीन के साथ भी काफी दिक्कतें हैं. इन्हें लगातार मेंटेनेंस की जरूरत होती है. साथ ही इनकी बॉडी भी सामान्य लड़ाकू विमानों जितनी मजबूत नहीं होती है. इसके अलावा जो सबसे बड़ी मुश्किल है, वो है इन्हें बनाने का खर्च. ये काफी महंगे होते हैं मिसाल के तौर पर अमे्रिका के B-2 Spirit फाइटर जेट को लें तो वे सामान्य बमवर्षक विमानों से कई गुना महंगा है. माना जाता है कि इस विमान की एक छोटी टुकड़ी बनाने में अमेरिकी सेना ने लगभग $105 बिलियन डॉलर खर्च किए.
ये भी पढ़ें: तुर्की का राष्ट्रपति, जो खुद को इस्लामी दुनिया का खलीफा मान बैठा है
भारत बना रहा स्टील्थ सबमरीन की योजना
भारत भी सैन्य मोर्चे पर खुद को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाने की तैयारी में है. भारत सरकार 42 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली स्टील्थ सबमरीन बनाने की परियोजना को हरी झंडी देने जा रही है. इसके तहत 6 स्टील्थ सबमरीन तैयार होंगी. ये गुप्त पनडुब्बियां लंबे समय तक पानी के भीतर काम कर सकती हैं. अभी नौसेना के पास सिर्फ दो स्कॉर्पियन और 13 पुरानी पीढ़ी के डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं जिन्हें 20 साल पहले बेड़े में शामिल किया गया था. अब नौसेना को अत्याधुनिक बनाने के पीछे हिंद महासागर में चीन को घेरना है.