शुक्रवार को कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी माना.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने न्यायपालिका के खिलाफ दो अपमानजनक ट्वीट के लिये 14 अगस्त को प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) को आपराधिक अवमानना( contempt of court ) का दोषी ठहराया था और कहा कि इन्हें जनहित में न्यापालिका के कामकाज की स्वस्थ आलोचना नहीं कहा जा सकता.
- News18Hindi
- Last Updated:
August 20, 2020, 10:14 AM IST
इससे पहले शीर्ष अदालत ने प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के बारे में अपमानजनक ट्वीट के लिये उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था और कहा था कि इन्हें जनहित में न्यायपालिका के कामकाज की निष्पक्ष आलोचना नहीं कहा जा सकता है. न्यायालय ने कहा था कि वह 20 अगस्त को इस मामले में भूषण को दी जाने वाली सजा पर दलीलें सुनेगा.
इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा था कि ट्वीट भले ही अप्रिय लगे, लेकिन अवमानना नहीं है. उन्होंने कहा था कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते. अदालत ने इस मामले में प्रशांत भूषण को 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने बुधवार को प्रशांत भूषण का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि भूषण के खिलाफ अवमानना मामला कानून के मूलभूत सवाल खड़े करते हैं, जिन पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए. जस्टिस कुरियन जोसेफ ने यह भी कहा कि एक स्वत:संज्ञान वाले मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दोषी ठहराया गए व्यक्ति को अंत:अदालती अपील का अवसर मिलना चाहिए.न्यायपालिका से जुड़े मसलों पर उठाते रहे हैं सवाल
प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसलों पर पहले भी सवाल उठाते रहे हैं. हाल के दिनों में कोरोना के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से पलायन करने वाले प्रवासियों को लेकर भी शीर्ष अदालत के रवैये की आलोचना की थी. इसी तरह भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिये थे.
प्रशांत भूषण ने 134 पन्नों के जवाब में अपने ट्वीट्स को सही ठहराने के लिए कई पुराने मामलों का जिक्र किया था, जिसमें सहारा-बिड़ला डायरी मामले से लेकर जज लोया की मौत, कलिको पुल आत्महत्या मामले से लेकर मेडिकल प्रवेश घोटाले, असम में मास्टर ऑफ रोस्टर विवाद, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम शामिल है.’
बता दें कि अदालत की अवमानना के अधिनियम की धारा 12 के तहत दोषी को छह महीने की कैद या दो हजार रुपये तक नकद जुर्माना या फिर दोनों हो सकती है.