गांगुली कब करेंगे दिव्यांग क्रिकेटरों की मदद
भारतीय दिव्यांग क्रिकेटरों को बीसीसीआई (BCCI) से मदद की उम्मीद, क्या मदद करेंगे अध्यक्ष सौरव गांगुली (Sourav Ganguly)
नई दिल्ली. भारतीय टीम की जर्सी पहनने वाले सारे क्रिकेटर किस्मतवाले नहीं होते , खासकर वे जो दिव्यांग हैं और जिन्हें इंतजार है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड उन्हें अपनी छत्रछाया में ले .भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज निर्मल सिंह ढिल्लों पंजाब के मोगा में दूध बेचकर गुजारा कर रहे हैं जबकि संतोष रंजागणे कोल्हापूर में दुपहिया वाहनों की मरम्मत करते हैं . वहीं बल्लेबाज पोशन ध्रुव रायपुर में एक गांव में वेल्डिंग की दुकान पर काम करते थे. कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बाद उन्हें खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करके गुजारा करना पड़ रहा है जिसमें उन्हें रोज 150 रूपये मिलते हैं . ये सभी भारत के क्रिकेटर हैं और हाल ही में राष्ट्रीय टीम की सफलता में इनकी अहम भूमिका रही है लेकिन अब ये पेट पालने के लिये जूझ रहे हैं क्योंकि ये बीसीसीआई (BCCI) के अधीन नहीं आते .
दिव्यांग क्रिकेटरों के लिए कब होगी समिति गठित?
बता दें लोढा समिति की सिफारिशों के अनुसार बोर्ड को शारीरिक रूप से अक्षम क्रिकेटरों के विकास के लिये एक समिति का गठन करना है जो अभी तक नहीं हुआ है . भारत की व्हीलचेयर टीम के कप्तान सोमजीत सिंह के अनुसार बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) ने भारतीय व्हीलचेयर क्रिकेट संघ के सीईओ से इस बारे में बात की थी . उन्होंने पीटीआई से कहा ,’ दिव्यांग क्रिकेटरों को लेकर नीति बनाने के लिये कोई बातचीत नहीं हो रही है . सौरव गांगुली ने मदद का वादा किया है . उन्हें भारत के व्हीलचेयर क्रिकेट के बारे में ज्यादा पता नहीं था और वह हमारे प्रदर्शन के बारे में सुनकर हैरान रह गए .’ सोमजीत ने पहले उत्तर प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट संघ और बाद में स्क्वाड्रन लीडर अभय प्रताप सिंह के साथ मिलकर राष्ट्रीय संघ बनाने में अहम भूमिका निभाई. सिंह वायुसेना के पूर्व फाइटर पायलट हैं जो अब व्हीलचेयर पर हैं . क्रिकेटरों का मानना है कि बीसीसीआई ने जिस तरह महिला क्रिकेट का विकास किया है, उसी तरह उनकी भी मदद की जाये . बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिलने से राज्य स्तर पर कई संघ पैदा हो गए . इससे व्हीलचेयर क्रिकेटरों को खेल में बने रहने के लिये अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ा है. संतोष ने कहा ,’जब हम नेपाल गए तो हमें उस दौरे के लिये 15000 रूपये देने को कहा गया था . इससे मेरा दिल टूट गया . इसके बाद मैं इस संघ से जुड़ा और तब से वे हमारा ध्यान रख रहे हैं.’ उन्हें राज्य सरकार से एक हजार रूपये पेंशन मिलती है . उनके पिता और भाई उन्हें राशन देते हैं .
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