सीरम इंस्टीट्यूट की मालिकाना हक एक भारतीय परिवार की है, जिन्होंने इसकी शुरुआत घोड़ों के लिए एक फार्म से की थी. आज यह इंस्टीट्यूट पूरी दुनिया को कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाने के लिए बड़े स्तर पर वैक्सीन तैयार करने में दिन-रात जुटी हुई है. हालांकि, अभी वैक्सीन बनाने में सफलता नहीं मिली है. लेकिन अगर सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन तैयार कर लेती है तो कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आदर पुनावाला (Adar Poonawalla) के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा दबाव वाला काम शुरू हो जाएगा. उनके पास कुछ ऐसा उपलब्ध होगा, जिसकी तलाश आज के समय में पूरी दुनिया को है.
एक मिनट में 500 डोज़ तैयार करने की क्षमता
उनकी कंपनी ने ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों (Oxford Scientists) के साथ वैक्सीन तैयार करने के लिए करार किया है. इसी कंपनी ने सबसे पहले अप्रैल के महीने में वैक्सीन बनाने का ऐलान करते हुए कहा था कि वो बड़े स्तर पर वैक्सीन तैयार करेगी. अप्रैल में क्लिनिकल ट्रायल (Clinical Trial of Vaccine) तक नहीं शुरू हुआ था. अब आदर पुनावाला दुनिया की सबसे तेजी से वैक्सीन एसेंबली लाइन तैयार कर रहे हैं, जहां एक मिनट में 500 डोज़ बनाया जा सकेगा.न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में उनके हवाले से लिखा है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मंत्री, प्रधानमंत्री, सरकार के अन्य लोग और उनके दोस्त कोरोना वायरस वैक्सीन के पहले बैच के लिए बातचीत करने में जुटे हैं. आदर पुनावाला ने कहा है कि उन्हें इन लोगों को समझाना पड़ रहा कि वो ऐसे ही वैक्सीन नहीं उपलब्ध करा सकते हैं. सीरम की एसेंबली लाइन में सालाना 1.5 अरब डोज़ तैयार करने की क्षमता है. दुनिया के करीब आधे बच्चों को सीरम के प्रोडक्ट से टीकाकरण हुआ है. बड़ी मात्रा में उत्पादन करना ही इस कंपनी की सबसे बड़ी खासियत है. कुछ दिन पहले ही कंपनी के पास 60 करोड़ ग्लास वायल पहुंचा है.
फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि इस कोरोना वायरस वैक्सीन की कितनी मात्रा भारत के लिए होगी या इसके प्रोडक्शन की फंडिंग कौन करेगा. यही कारण है कि पुनावाला पर अभी कई तरह का दबाव है. उन्हें राजनीतिक सामंजस्य के साथ फाइनेंशियल और विदेशी व घरेलू स्तर पर कई तरह के दबाव को झेलना है. भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं.
सीरम इंस्टीट्यूट में काम करते हुए वैज्ञानिक (फोटो क्रेडिट: सीरम इंस्टीट्यूट वेसाइट)
भारत को कितना वैक्सीन उपलब्ध हो सकेगा?
न्यू यॉर्क टाइम्स को 39 वर्षीय आदर पुनावाला ने कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार किए गए वैक्सीन को वो 50-50 फीसदी के दो हिस्सों में बांटेंगे. इसका एक हिस्सा भारत के लिए होगा और दूसरा हिस्सा पूरी दुनिया के लिए होगा. इसमें अधिकतर गरीब देश ही शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को भी इससे कोई समस्या नहीं है. लेकिन, उन्होंने कहा कि इस बात की भी संभावना है कि सरकार किसी तरह की इमरजेंसी स्थिति में अपने हिसाब से जरूरी कदम उठा सकती है.
आसान नहीं वैक्सीन उत्पादन
ऑक्सफोर्ड ने अन्य कंपनियों के साथ भी करार किया है जो दुनियाभर के कई फैक्ट्रियों में बड़े स्तर पर वैक्सीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. वैक्सीन तैयार करना समय लगने वाली प्रक्रिया है. लाइव कल्चर को बायोरिएक्टर्स (Bioreactors) में हफ्तों लगते हैं. इसके बाद हर एक-एक वायल को बेहद ध्यान से साफ किया जाता है, उन्हें भरा जाता है और फिर सील करने के बाद पैकेजिंग होती है. यही कारण है कि ये कंपनियां वैक्सीन तैयार करने के लिए दो-दो काम एक साथ ही कर रही हैं. चूंकि, वैक्सीन अभी भी ट्रायल फेज़ में है, इसलिए कंपनियां समय बचाने के लिए ये कदम उठा रही हैं. अगर वैक्सीन का ट्रायल सफल हो जाता है तो अगले 6 महीने में अधिकतर लोगों तक इसे पहुंचाने में मदद मिलेगी.
ये कंपनियां भी वैक्सीन की रेस में
अमेरिकी व यूरोपीय देशों (European Nations) ने भी वैक्सीन तैयार करने के लिए अरबों डॉलर्स खर्च किया है. वो लगातार कई कंपनियों के साथ संपर्क में हैं, जिनमें Johnson & Johnson, Pfizer, Sanofi और AstraZeneca जैसे नाम हैं. ऑक्सफोर्ड की सबसे प्रमुख पार्टनर AstraZeneca है और इस कंपनी ने अमेरिका, यूरोप और अन्य मार्केट्स के लिए 1 अरब डोज़ तैयार करने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है. इसी कंपनी ने सीरम इंस्टीट्यूट को भी वैक्सीन तैयार करने की अनुमति दी है. पुनावाला के मुताबिक, उनकी कंपनी प्रोडक्शन का सारा खर्च खुद ही उठा रही है.
दुनियाभर की वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों की तुलना में सीरम बिल्कुल अलग है. दरअसल, अन्य भारतीय कारोबार की तरह ही सीरम इंस्टीट्यूट भी एक पारिवारिक बिजेनस का हिस्सा है. इससे कंपनी को जल्द फैसले लेने और बड़े जोखिम उठाने की क्षमता है. पुनावाला ने कहा कि उन्हें 70 से 80 फीसदी उम्मीद है कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन काम करेगी.
कैसे पड़ी थी सीरम इंस्टीट्यूट की नींव?
करीब 50 साल पहले सीरम इंस्टीट्यूट की नींव तब पड़ी थी, जब उनके पिता ने घोड़ों का एक फार्म खोला था. आदर पुनावाला के पिता साइरस पुनावाला (Cyrus Poonawalla) को महसूस हुआ कि वो वैक्सीन लैब्स में घोड़ों के सीरम के लिए दान में देने की जगह उनके पास एक रास्ता है कि इन घोड़ों को कम मात्रा में टॉक्सिन इंजेक्ट किया जाए. इसके बाद इनके खून में सीरम की मौजूदगी होगी, जिसे निकाला जा सकता है. इसे प्रोसेस कर वो खुद ही वैक्सीन तैयार कर सकते हैं.

साइरस पुनावाला
1967 में उन्होंने टिटनेस (Teatnus) से शुरुआत की. फिर सांप के काटने के बाद इस्तेमाल होने वाला एंटीबॉडीज तैयार किया. इसके बाद ट्यूबरक्यूलोसिस, हेपेटाइटिस, पोलियो और फिर फ्लू तक का वैक्सीन बनाने लगे. इस प्रकार साइरस पुनावाल ने अपना बिजनेस खड़ा किया. आज उनका नाम भारत के सबसे अमीर लोगों में से एक है. भारत में सस्ते मजूदर और एडवांस टेक्नोलॉजी के दम पर सीरम इंस्टीट्यूट को यूनिसेफ (UNICEF) का कॉन्ट्रैक्ट मिला. आज ये कंपनी दुनियाभर के कई गरीब देशों में वैक्सीन उपलब्ध कराती है. पुनावाला परिवार आज 5 अरब डॉलर (करीब 3.75 लाख करोड़ रुपये ) का मालिक है.
आज भी सीरम इंस्ट्रीट्यूट के कैम्पस में घोड़ों के रहने के लिए व्यवस्था है. पुणे के इस कैम्पस में करीब 5,000 लोग काम करते हैं. कोरोना वायरस वैक्सीन तैयार करने की फैसिलिटी में वैज्ञानिनक बायोरिएक्टर पर गहनता से नजर बनाये रखते हैं. इस रिएक्टर को एक बड़े स्टेनलेस स्टील वैट्स में रखा गया है जहां वैक्सीन के सेलुलर मैटेरियम को रिप्रोड्यूस किया जाता है. ये सेल्स बेहद नाजुक होते हैं. वैज्ञानिकों को इनके ऑक्सीजन लेवल पर लगातार ध्यान देना होता है.
ट्रायल पूरा होने से पहले ही क्यों शुरू हुआ उत्पादन?
ऑक्सफोर्ड की इस वैक्सीन की शुरुआती ट्रायल से पता चला कि इससे ठीक वैसे ही एंटीबॉडी तैयार हुए हैं, जो किसी कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज के ठीक होने के बाद मिलते हैं. वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया में दुनिया के लिए यह पहली अच्छी खबर थी. सीरम ने अब तक इस वैक्सीन के लाखों डोज़ तैयार कर लिए हैं ताकि रिसर्च और डेवलपमेंट का काम हो सके. इसमें मौजूदा ट्रायल के लिए डोज़ भी हैं. नवंबर तक ट्रायल खत्म होने की उम्मीद की जा रही है. तब तक इस कंपनी के पास कॉमर्शियल यूज के लिए करीब 30 करोड़ वैक्सीन डोज़ उपलब्ध होगा.
वैक्सीन फेल होने के बाद सीरम के पास क्या रास्ते हैं?
अगर यह वैक्सीन फेल भी हो जाती है तो भी सीरम इंस्टीट्यूट के लिए बहुत कुछ बचेगा. दरअसल, कंपनी ने अन्य वैक्सीन डिजाइनर्स के साथ भी करार किया है. ये वैक्सीन अभी शुरुआती स्टेज में हैं. इन वैक्सीन को फिलहाल बड़े स्तर पर तैयार नहीं किया जा रहा है. पुनावाला फिलहाल एक ऐसी स्थिति में पहुंच चुके हैं, जहां अगर मौजूदा सभी वैक्सीन फेल भी हो जाते हैं तो वो उस वैक्सीन के लिए एसेंबली लाइन शुरू कर सकते हैं, जिसे किसी अन्य ने तैयार की है. बेहद कम संस्थान हैं, जो इतनी कम कीमत पर वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग करने में सक्षम हैं. वो भी इतने बड़े स्तर पर.

आदर पुनावाला
फंड की कमी
AstraZeneca के साथ करार के तहत, भारत व मीडिल इनकम वाले देशों के लिए सीरम करीब 1 अरब डोज़ तैयार कर सकती है. इसके लिए कंपनी प्रोडक्शन कॉस्ट से ज्यादा नहीं चार्ज करेगी. जब एक बार मौजूदा महामारी खत्म हो जाएगी, जब कंपनी इसे प्रॉफिट पर बेच सकती है. हालांकि, सबसे बड़ा फैक्टर ये है कि अगर ये वैक्सीन सफल हुआ तो ही ये काम हो सकेगा. कंपनी की सबसे बड़ी चुनौती कैश फ्लो की है. इस वैक्सीन को तैयार करने के लिए कंपनी करीब 45 करोड़ डॉलर (करीब 3,371 हजार करोड़ रुपये ) खर्च कर रही है. इसमें से कुछ खर्च को तो रिकवरी भी नहीं किया जा सकेगा. मसलन, वैक्सीन स्टोर करने के लिए वायल्स का खर्च, पूरी प्रोसेस में इस्तेमाल होने वाले केमिकल का खर्च. इसी को देखते हुए पुनावाला अब सॉवरेन वेल्थ फंड या प्राइवेट इक्विटी फंड के जरिए पैसे जुटाने पर विचार कर रहे हैं.
एनलिस्ट्स का मानना है संभवत: ग्लोबल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम चलाने वाले बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन या भारत सरकार से सीरम इंस्टीट्यूट को कुछ मदद मिल सकती है. हालांकि, इस पर कहीं से भी कोई ठोस बात सामने नहीं आई है. एक बात यह भी है कि सीरम को इन दोनों से किसी भी डील के तहत प्राप्त होने वाली रकम दुनिया के अन्य उन फार्मा कंपनियों से बहुत कम ही होगी. ये कंपनियां वैक्सीन के डेवलपमेंट से लेकर प्रोडक्शन तक पर काम कर रही हैं. जबकि, सीरम की भूमिका केवल ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के प्रोडक्शन तक ही सीमित है.
आदर पुनावाला ने इस कंपनी की कमान 2011 में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में संभाला था. तब से लेकर अब तक कंपनी ने कई नये मार्केट में खुद का विस्तार किया है और आज कंपनी की रेवेन्यू करीब 800 मिलियन डॉलर (करीब 6 हजार करोड़ रुपये) तक पहुंच गई है.